हमारे देश मे नवरात्रि पर्व को विशेष महत्व दिया जाता है, हिन्दू समाज इसे बहुत अधिक महत्व देता है और बहुत ही उत्साह उल्लास के साथ इसकी प्रतीक्षा भी करते हैं! नवरात्रि में नौ दिन तक देवी माँ की आराधना की जाती है , प्रतिदिन अलग स्वरूप की पूजा होती है और अलग अलग स्वरूपों को हम अपने अंदर धारण भी करते हैं! भक्त विभिन्न प्रकार से शक्ति की उपासना करते हैं!
भजन कीर्तन जाप पाठ जिस प्रकार से भी साधक का मन उस शक्ति में टिकता हो! उसी प्रकार सभी पूर्ण उत्साह से देवी का आह्वाहन करते हैं!
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
इस प्रकार सारी ही शक्तियों के स्वरूप को पूजते हुए साधक अपने अंदर धारण करता है! हमारे शरीर मे जो नौ मर्मस्थल हैं जिन्हें चक्र कहा जाता है : प्रतिदिन इन अलग अलग चक्रों में शक्ति संचार और जागरण करने का नियम है!
भोजन भी सात्विक , रहन सहन सात्विक , बाहर का श्रृंगार छोड़कर साधक अंदर के श्रंगार की ओर अधिक ध्यान देता है! वास्तव में देखा जाए तो यह पर्व जागरण का पर्व है ,वैसे तो भक्त माता की चौकी, जागरण भी करवाते हैं परंतु वास्तविक जागरण तो अंदर का है! अपनी आत्मा को जागृत करना , अपनी शक्तियों को जागृत करना ही इसका मुख्य उद्देश्य है!
मंदिरों में गूंजती हुई सात्विक ध्वनियां, मंत्रोच्चार, दुर्गा सप्तशती का पाठ, यह सभी प्रकृति में अलग ही आनंद भर देते हैं! सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात अपने अंदर की कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करना है , वही शक्ति जब शिव से मिल जाती है! तो चमत्कार घटित होता है – नवरात्रि के दिनों में विशेष सहयोग मिलता है क्योकि दैविक शक्तियाँ अधिक क्रियाशील होती हैं !
आश्रय चाहिए तो अपने सदगुरु का – वही ज्ञान और कृपा देंगे जिससे आपके चक्रों का जागरण भी होगा और शक्ति की प्राप्ति भी! यही नवरात्रि का विशेष संदेश है !
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Jay guru dev koti koti pranam