हर शिष्य अपने सदगुरु का प्यारा बनना चाहता है! गुरुकृपा का अधिकारी -परंतु उसके लिए कुछ नियम हैं ,मार्गदर्शन हैं जो हमे अपनाने चाहिए आइए आज उन्ही का चिंतन करते हैं !
सर्वप्रथम तो हमे अपने गुरु का समर्पित शिष्य बनना होगा, गुरु की मर्जी में हमारी मर्जी! जैसा वह हमें बनाना चाहे , उनको समर्पित कर दो! एक गहरा समर्पण ,अतिशय प्रेम और अटल विश्वास- यही सीढ़ियाँ है गुरुक्रपा पाने की यह मेरी अर्ज़ी है! में वो हो जाऊं जो तेरी मर्ज़ी है !
सदगुरु शिल्पकार की भांति हमे गढ़ते हैं , हमारे खोट निकालते हैं , अगर उनकी डाँट भी मिलती है तो उसे सहर्ष स्वीकार करो! यहभी उनकी कृपा का ही रूप है : कह दो सदगुरु मैं तो कोरा कागज़ हूँ आप जो चाहे रंग भर दें-हमारी मैँ कही बाकी ना रह जाये !
सदगुरु के समक्ष जाने का भी एक प्रोटोकॉल होता है! कम से कम 3फ़ीट की दूरी बनाकर गुरु से बैठना चाहिए , धक्का मारकर गुरु के नज़दीक जाकर चरण स्पर्श करने से आप कृपा से वंचित हो जाओगे -मर्यादा हीन शिष्य गुरु का प्यारा नहींहो सकता !
सरलता, विनम्रता ,भोलापन यही वह गुण हैं! जो आपको अपने गुरु का प्रिय बनाते हैं -आप कितने बड़े पद पर हैं , कितने आर्थिक रूप से सम्पन्न या कुछ और –गुरु के दरबार मे सब समान हैं , इसलिए अपने अहंकार का विसर्जन करके गुरु के समक्ष जाना चाहिए, पुराने समय मे राजा महाराजा भी अपना मुकुट, अस्त्र शस्त्र बाहर रखकर ही गुरु के दर्शनके लिए प्रवेश पाते थे !
सबसे प्रमुख बात कि! हमे गुरु को मानना तो ठीक है पर उससे अधिक महत्वपूर्ण है! “गुरु की मानो” अर्थात सदगुरु का प्रत्येक वचन अमृत वचन है ,यह ध्यान में रखते हुए उनकी हर एक आज्ञा को शिरोधार्य करना होता है !
यदि कोई शिष्य गुरु के दिये हुए निर्देशो का पालन नही करता! उसके अनुसार अपने जीवन को नहीं ढालता ,तो वह कभी गुरुकृपा का अधिकारी नही हो पायेगा! गुरु हमारी दिनचर्या को अनुशासन में ढालते हैं -नियमो में ढालते हैं ,हमे हर क्षण उसका पालन करना होगा !
गुरु हमारे मन का ध्यान रखते हैं! तो शिष्य का कर्तव्य बनता है! कि वह अपने गुरु के तन का ध्यान रखे, उन्हें किसी प्रकार कष्ट ना पहुंचे! क्योकि वह भगवान के वरदान स्वरूप हमे प्राप्त हुए हैं !
जो शिष्य अपने गुरु की निंदा करता है या सुनता है! वह घोर पाप का भागी होता है, इसलिए ऐसे लोगो से दूरी बनाकर रखे क्योकि गुरु की निंदा या अपमान से बढ़कर कोई पाप नहीं! ऐसा व्यक्ति घोर नरक का भागीदार होता है !
अंत मे इतना ही ! कि हमे अपने गुरु का संदेशवाहक बनना है, उनके ज्ञान का प्रकाश पूरे विश्व मे फैलाना है ,उनके सेवा कार्यो में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना है और एक सरल हृदय, प्रेमपूर्ण हृदय के साथ गुरु को पूर्ण समर्पण -बस तू ही तू, तू ही तू तू ही तू मेरे सदगुरु निश्चित ही आप गुरु के प्रेमपात्र भी होंगे और गुरुकृपा के अधिकारी भी! सभी को गुरुपूर्णिमा की शुभकामनायें, यह पूर्णिमा सभी का कल्मष दूर करके कृपापात्र बनाये !
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Spread the pearls of wisdom of Guru far and wide.Om Guruve Namah