यज्ञ करने के लिए यज्ञ मण्डप में प्रवेश करते ही यदि अंतःकरण आध्यात्मिक आहलाद एवं श्रीसम्पदा के उमंग से भर उठे, तो समझना चाहिए यहां दैवीय शक्तियां अपना कार्य कर रही हैं।
तपोभूमि आनन्द धाम का यज्ञ परिसर एवं इस वर्ष का महायज्ञ प्रयोग कुछ ऐसी ही विशिष्ट सम्भावनाओं वाला होगा। याजक को शारीरिक, मानसिक व आत्मिक स्तर पर जो कुछ अप्राप्त है उसकी प्राप्ति कराने में सहायक बनेगा। जिसमें प्राणशक्ति की अभिवृद्धि, उत्तम संतान प्राप्ति, अक्षय कीर्ति विस्तार, धन-लक्ष्मी, ऐश्वर्य की प्राप्ति, शांति, मानसिक पवित्रता, आत्म उन्नति, श्रद्धा-मेधा वृद्धि, परमात्म दर्शन, ऋण मुक्ति, अनन्त सुखों की प्राप्ति आदि सभी महत्वपूर्ण पक्ष शामिल है। ऋषियों द्वारा शदियों से होते आये निष्काम-सकाम यज्ञ प्रयोग के विशिष्ट दर्शन का सौभाग्य भी मिलेगा।
ऋषियों ने निष्काम यज्ञों के लिए सभी काल-दिवस शुभ बताये हैं, परन्तु सकाम यज्ञों जैसे रोगनिवारण, सुख-शांति, धन-वैभव प्राप्ति, पद-प्रतिष्ठा आदि हेतु किये गये यज्ञ में मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। गुरु निर्धारित मुहूर्त के चलते यह यज्ञ और भी लाभकारी योग बना रहा है। क्योंकि गुरु अनुशासन में किये गये यज्ञ में साधक-यजमान एवं याजक का योग-क्षेम भी गुरु स्वयं वहन कर लेता है। ऋषियों, सद्गुरुओं-संतों के सान्निध्य में किये गये यज्ञ इसके प्रमाण हैं, इसीकारण वे सर्वाधिक कामनाओं को प्रदान करने वाले रहे हैं। कहते हैं च्यवन ऋषि ने अश्विनी कुमारों का यज्ञ कराया और इसके प्रभाव से उन्होंने देवलोक में सुरदुर्लभ ऐश्वर्य प्राप्त किया। शुक्राचार्य ने बलि का यज्ञ सफल कराकर बलि को दिक घोड़ों से जुता रथ, दिव्य अस्त्र आदि दिलाया, जिससे उन्होंने स्वर्ग लोक पर विजय पायी थी।
ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो धनबल, बुद्धिबल, संगठनबल की शक्ति और श्री समृद्धि की चाहत सदैव से हर किसी को रही है, इसे पाने के लिए अनन्तकाल से अनेक प्रकार के यज्ञ प्रयोग होते आये। संस्कृतियां बदलीं तो प्रयोग भी बदलते गये, लेकिन यज्ञ का सत्य नहीं बदला। इसे पाने के अस्त्र व शस्त्र भी लगभग एक समान रहे। हां समय के साथ यज्ञ के पीछे की सोच व धारण विकृति होने से व्यक्ति लक्ष्य से भटकता रहा और कष्ट भोगने को विवश होता रहा। इस सबके बावजूद हमारे ऋषियों ने यज्ञ विधि से व्यक्ति व समाज को जोड़कर उसे शक्ति और श्री समृद्धि का मालिक बनाये रखा। पूज्य सद्गुरुदेव का यह संकल्पित महायज्ञ इन सभी शक्ति धाराओं का समन्वय लेकर प्रस्तुत है। “श्री गणेश-लक्ष्मी महायज्ञ’’ इसी का पर्याय है।
आज समाज विक्षुब्धता का शिकार हो रहा है, परिणामतः वातावरण भी विक्षुब्ध है। व्यक्ति येन केन प्रकारेण शक्ति और समृद्धि तो पा ले रहा, लेकिन सुख-शांति गायब होती जा रही। इसका दुष्प्रभाव जीवनशैली, पर्यावरण एवं स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। यह महायज्ञ मनुष्य की आंतरिक व वाह्य प्रकृति दोनों को संतुलित करने में सहायक होगा। महाराजश्री कहते हैं-‘‘हमारे यज्ञीय ज्ञान-विज्ञान का मूल लोप होने से हम विश्वगुरु व सोने की चिड़िया से नीचे आ गये। जबकि कभी दुनिया में स्वास्थ्य-सर्जरी तक की विद्या में ये भारतीय यज्ञीय विधियां प्रयोग होती थीं,
सम्पूर्ण विश्व ने भारत से इन सूत्रें को पाया और आजमाया आज दुनिया में हमारे ऋषियों का यज्ञीय प्रयोग 10% शेष बचा है, हमें पुनः यज्ञीय, विधि से वैदिक, सनातन विज्ञानसम्मत देव संस्कृति को वापस लाना है।“ प्रत्येक वर्ष आनन्नदधाम तपोभूमि परिसर में महायज्ञ आयोजन कर उस श्रेष्ठ परम्परा को पुनः शोधित करने का भी तो यह प्रयोग है।
चारों वेंदों की पाठ पद्धति में समाये स्वरों का अपना विज्ञान है। हमारे ऋषि महायज्ञों में सदियों से इन स्वरों का प्रयोग करते हुए लोक कल्याण-आत्मकल्याण करते आये हैं। यह विशिष्टता दुनिया भर में केवल हमारे वेदों, आर्ष ग्रंथों में है। कहते हैं स्वर के अनुसार हमारे मंत्र के अर्थ तो बदलते ही हैं, उनके प्रभाव तक बदल जाते हैं। विविध महायज्ञों के अवसरों पर प्रयोग होने वाली स्वर पद्धति याजक के जीवन को शांति, सुख, समृद्धि से भरने में सहायक बने यह भी गुरुसत्ता का लक्ष्य है। याजक इसमें अपने को भागीदार बनाकर विशिष्ट बनाने में समर्थ हो सकते हैं। साथ ही हमारे याजक यज्ञ मंत्रें के सहारे इन दिव्य स्वरों को अगली पीढ़ी के लिए हस्तांतरित करने का पुण्य लाभ भी पा सकेंगे।
वैदिक सम्पत्ति विश्लेषकों के वर्णन मिलते हैं कि प्राचीनकाल में देवताओं के विमान मणियों से चलते थे और राक्षसों के विमान ईंधन, डीजल, चर्बी आदि से चलते थे। इस दृष्टि से देखें तो हम आखिर आज के वातावरण को क्या दे रहे है? और सम्पूर्ण वायुमंडल को किस धुंध में धकेला जा रहा है? महायज्ञ में हजारों साधक एक साथ दिव्य औषधीय जड़ीबूटियों से यज्ञाहुति देकर पर्यावरण को सम्भालने का ही कार्य तो करते हैं। इस प्रकार यज्ञ से सद्चिंतन वाले समूह मन के निर्माण करने व पर्यावरण संवर्धन का भी याजकगण विशेष पुण्य पा
सकेंगे। वास्तव में पंचतत्व प्रदूषित होने को ही देवताओं का रु” होना कहते हैं। पूज्य सद्गुरुदेव चाहते हैं कि ईंधन और तेल से चलने वाले विमानों, वाहनों के प्रति ललक घटे, जिससे हमारे वायु, जल, पृथ्वी आदि वातावरण के पंचतत्व प्रदूषित होने से बच सकें। यह महायज्ञ हमारे वायुमंडल के वातावरण को शुद्ध करने के साथ-साथ हमारे प्राचीन विज्ञान से हमें जोड़ने का भी संदेश लेकर आ रहा है। इस यज्ञ में अधिक से अधिक साधक पधारें और पुण्य के भागीदार बनें। स
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परम पूज्य परम वंदनीय पतित पावन श्री सदगुरु देव महाराज जी के श्री चरणों में कौटी कौटी दणडवत प्रणाम नमन जय हो सदगुरु देव महाराज जी आपकी जय हो शुक्रिया बहुत बहुत शुक्रिया औम गुरुवै नम औम नमो भगवते वासुदेवाय नम