आत्मचिंतन के सूत्र: || धर्म आपके अंदर दिव्यत्त्व जगाता है! || Sudhanshu Ji Maharaj

आत्मचिंतन के सूत्र: || धर्म आपके अंदर दिव्यत्त्व जगाता है! || Sudhanshu Ji Maharaj

आत्मचिंतन के सूत्र: || धर्म आपके अंदर दिव्यत्त्व जगाता है!

आत्मचिंतन के सूत्र:

धर्म आपके अंदर दिव्यत्त्व जगाता है!

मंदिर में दिया जलाए ना जलाए, लेकीन दुसरों को गिरने से बचाने के लिए एक भी दिया आपने जलाया तो भगवान उसे स्वीकार करते है।

दुसरों के साथ वही व्यवहार करे जो आप अपने लिए चाहते है। यही धर्म है।

याज्ञवल्क्य ऋषि ने कहा है- यज्ञ, सत्संग, कोई भी भलाई का काम हो तो वहां ना बुलाए भी जरूर जाना- क्योंकी यह स्वयं को जगाने का अवसर है।

दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने भी शुक्रनिती में लिखा है- सिखने का, सेवा का, भलाई का अवसर जब भी मिले, चूंकना नही। यही यज्ञ है, यही धर्म है, और यह जीवन में सुख लाता है। हमारी कोशीश हो की हमारा प्रत्येक कर्म दिव्य कर्म बने। दिव्य कर्म करना ही धर्म है!

हमारे अंदर दिव्यत्व आ जाए इसके लिए हर दिन अपने आप को अफर्मेशन कहे- अजरोहम्, नित्योहम् , शिवोहम, शाश्वतोहम्।
अजरोहम्- मै ना मरने वाला हूं। शरीर बदलेगा पर मैं मिटनेवाला नहीं। मेरा आत्म तत्व मिटेगा नहीं।

नित्योहम्- मैं नित्य हूं, विनाशशील नहीं।
शिवोहम- मैं कल्याण करनेवाला, भद्र भाव युक्त हूं।
शाश्वतोहम्- मैं शाश्वत हूं।

जब भी मन कमजोर हो- खुद से वैदिक मंत्र कहे – अहं इंद्रो न पराजिग्ये।
मैं वह ऐश्वर्ययुक्त आत्मा हूं जो हारने के लिए दुनिया में नहीं आया। मैं जीत कर आगे बढ़ने वाला हूं, मैं जीतता हूं। मैं हारने वाला नहीं।

एफर्मेशन करने से पहले विधि है, शिष्टाचार है। पहले मन मस्तिष्क को अल्फा लेवल में लाए- जहां आप शांत, सहज ,साम्यावस्था में होते हो। प्रेम पूर्ण हो, चेहरे पर दिव्य भाव हो, आपके रोम रोम में आनंद खिला हो। तब खुद से कहे- अजरोहं, नित्योहं, शिवोहं, शाश्वतोहं।

धर्म वाले अपने अंदर शुद्ध विचार ही सींचते हैं! जब भी मन में गलत विचार आए तो खुद से कहे- मेरे मन में उठने वाले पाप, दूर हट, क्यों मुझे गिराने आया है? मैं गिरने वाला नहीं।

धर्म से बनता है शांत और संतुलित मस्तिष्क! ध्यान में जब भी आप ह्रदय से प्रार्थना करें तो आप शक्ति अनुभव करेंगे।

1 Comment

  1. Parkash sharma says:

    Sab ka Bala ho

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