मनुष्य के चार शत्रु हैं! – अज्ञान, अन्याय, अभाव , और आलस्य! सबसे पहले, अज्ञानता और अन्याय से लड़ो ; फिर हराना है ‘अभाव’ को! मानवजाति ने सदैव इसका सामना किया है!
किसी को भी सहज जीवन नहीं जीना चाहिए. व्यक्ति को अपने जीवन के अंत तक सक्रिय रहना होगा और इस प्रकार परेशानियों पर काबू पाना होगा! अन्याय, अभाव और आलस्य अज्ञान के कारण होते हैं! ज्ञान के उदय के साथ ये तीनों स्वतः ही लुप्त हो जाते हैं। तो, सबसे पहले अज्ञान को नष्ट करने के बारे में सोचो!
अज्ञान को केवल मात्र किताबें पढ़ने से और प्रवचन सुनने से नष्ट नहीं किया जा सकता! ये तो एक साधन मात्र हैं! जो पढ़ा और सुना है उस पर विचार करें और सोचें कि आप उसे कैसे अपना सकते हैं!
अपना जीवन बनाएं और उससे प्रेरणा लें। कभी-कभी बैठे-बैठे एकांत में आत्ममंथन करें कि आपका जीवन कैसा है, आपकी आदतें क्या हैं, आप क्या बनना चाहते हो और क्या बन गये हो?
मन में खुशी पैदा करें: कुछ धन संचय कर लेना या किसी विशेष पद को पाना ख़ुशी नहीं है! विचार करना चाहिए की आत्मा और मन – उनकी स्थिति क्या है? जब आप इस तरह से विचार करना शुरू कर देंगे ख़ुशी आपके भीतर प्रवेश करने लगेगी। एक स्वस्थ व्यक्ति कितना खुश रहता है! यदि आप मानसिक रूप से स्वस्थ और खुश हैं, तो आपके आस-पास की दुनिया में सब कुछ खुश रहेगा!
अगर आपका मन उदास हो तो आपको सुन्दर से सुन्दर दृश्ये भी दुःख से भरा दिखेगा! खुशी अच्छे स्वास्थ्य में निहित है: जब मन खुश होता है, तो शरीर स्वस्थ होता है! आत्मा बलवान है तो हमारे चारों ओर सब कुछ प्रसन्नचित्त प्रतीत होता है।
इसी तरह, जब आप अपने हृदय को और आत्मा को शुद्ध करोगे आपको चारों ओर आनंद ही आनंद देखने को मिलता है। अपने भीतर विश्राम करना होगा ! इसके लिए कष्टदायक चीजों को, विचारों को त्यागना होगा! दर्द ही परेशानी है: विचार करो कौन सी चीजें दर्द का कारण बनती हैं?
मौत उसे परेशान करती है जो मोह के बंधन में बंधा हुआ है। ऊपर उठने वाले की अवस्था |माया और मोह एक मृगतृष्णा की तरह हैं जिनके आकर्षण से आपको ऊपर उठना होगा! अत: मनुष्य को अपने भीतर झांकना चाहिए और आत्मा के अस्तित्व पर विचार करना चाहिए। आत्मनिरीक्षण से अज्ञान दूर होता है